KARTIK PURNIMA
कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा
संसार की रचना के समय से ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन का अपने आप में बहुत खास महत्तव रखता है। हिन्दु धर्म में इस तिथि को पवित्र मानने के पीछे एक कारण यह भी है कि इस दिन को ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य जैसे देवताओं का दिन माना गया है।
शास्त्र कहते हैं-
पुराणों और शास्त्रों की कथा के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक महाबलशाली राक्षस का संहार किया था इसी कारण इसका महत्व केवल वैष्णव भक्तों के लिए ही नहीं बल्कि शिव भक्तों के लिए भी है। इस दिन श्रीसत्यनारायण जी की कथा सुनने का प्रचलन है और शाम के समय भक्त मंदिरों, चौराहों को साथ-साथ पीपल के वृक्ष, तुलसी के पौधे पर भी खास तौर पर दीपक जलाये जाते हैं। इस दिन गंगाजी को भी दान अर्पण किया जाता है। पुराणों में उल्लेख है कि कार्तिक पूर्णिमा को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे चारों पुरूषार्थो को देने वाला दिन माना गया है और स्वयं विष्णु ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा जी ने नारद को और नारद जी ने महाराज पृथुकों को कार्तिक मास के दिन सर्वगुण सम्पन्न महात्म्य के रूप में बताया है।
क्या करते है कार्तिक पूर्णिमा के दिन-
ऐसा माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन से शुरु करके प्रत्येक पूर्णिमा को व्रत और जागरण करने से सभी मनोकामनाएँ सिद्ध होती हैं। इस दिन भक्त स्त्रान, दान, हवन, यज्ञ और उपासना करते हैं ताकि उन्हें मन चाहे फल की प्राप्ति होती हो सके। इस दिन गंगास्त्रान और शाम के समय दीपदान करना भी बहुत शुभ माना गया है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भारी तादाद में गंगा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ माना जाता हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि भरणी नक्षत्र में गंगा स्नान व पूजन करने से सभी तरह के ऐश्वर्य और सुख-सुविधा की प्राप्ति होती है।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्तव-
साल मे करीब 16 अमावस्या पड़ती है लेकिन साल की सबसे काली और लंबी अमावस्या की रात कार्तिक मास की अमावस्या यानि दीपावली के दिन मनाई जाती है और इसके 15 दिन बाद कार्तिक मास की पूर्णिमा पड़ती है जो संसार में फैले अंधेरे का सर्वनाश करती है। लोगों में ऐसी आस्था है कि इस दिन ईश्वर की अराधना करने से मनुष्य के अंदर छिपी सभी तामसिक प्रवृतियों का नाश होता है और इनकी सामप्ति के साथ ही मनुष्य देव स्वरूप प्राप्त कर सकता है। कार्तिक में पूरे माह ब्रम्हा मुहूर्त में नदी, तालाब, कुण्ड, नहर में स्त्रान कर नियमपूर्वक भगवान की पूजा की जाती है। कलियुग में कार्तिक मास व्रत को मोक्ष का द्बार बताया गया है।
गंगा स्नान का महत्तव-
शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का बड़ा महत्तव बताया गया है। ऐसा श्रद्धापूर्वक माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से पूरे साल गंगा मईया आप पर प्रसन्न रहती है। इस दिन न केवल गंगा बल्कि अन्य पवित्र नदियों के साथ-साथ तीर्थों में भी स्नान करने की प्रथा है यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी में भी स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेंश्वपर तीर्थ में लोग बड़ी श्रद्धा से स्नान करते है। क्योंकि गढ़मुक्तेिश्व र और महाभारत काल के बीच गहरा संबंध है। दरअसल युद्घ समाप्त होने के बाद युद्धिष्ठिर अपने परिजनों का शव देखकर बहुत दुखी हो उठे थे। पाण्डवों को इस दुख से निकालने के लिए ही भगवान श्री कृष्ण ने गढ़मुक्तेश्वर में आकर इसी दिन मृत आत्माओं की शांति के लिए यज्ञ और दीपदान किया और तभी से कार्तिक पूर्णिमा के दिन गढ़मुक्तेृश्वंर में स्नान और दीपदान की परंपरा शुरू हुई थी।
कार्तिक पूर्णिमा की पूजन विधि-
इस दिन सुबह स्नान करने के बाद पूरा दिन निराहार अर्थात बिना भोजन के रहा जाता है और भगवान विष्णु की आराधना करते हुए पूरे दिन भगवान का भजन करते हैं । इस दिन मंदिरों को विशेष रुप से सजाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करने वाले भक्त ब्राह्मण को भोजन भी कराते है, जो विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। ब्राह्नण को भोजन से पूर्व हवन भी कराया जाता है। अपनी क्षमता के अनुसार ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दी जाती है और रात्रि में चन्द्रमा के दर्शन करने पर शिवा, प्रीति, संभूति, अनुसूया, क्षमा तथा सन्तति इन छहों कृत्तिकाओं का भी पूजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पूजन तथा व्रत के बाद यदि बैल दान किया जाता है तो व्यक्ति को शिवलोक की प्राप्ति होती है। इस दिन गंगा तथा अन्य पवित्र स्थानों पर श्रद्धा-भक्ति के साथ स्नान करने वालों को भाग्यशाली माना जाता हैं।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन दान का महत्तव-
शास्त्रों में दान का बड़ा महत्व बताया गया है लेकिन कार्तिक पूर्णिमा के दिन किए गए दान का अपना ही एक अलग विशेष महत्व है। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि इस दिन जिस वस्तु का भी दान किया जाता है, वो उसे मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में वापस मिल जाती है और प्रेमपूर्वक जो भी जरूरतमंदों को वस्त्र,धन और अनाज का दान करता है, उसे बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है।