उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर स्थित है. बारह ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित होने के साथ यह चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। उत्तराखंड में बद्रीनाथ और केदारनाथ ये दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा ही माहात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है। केदारनाथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन मात्र से समस्त पापों का नाश हो जाता है। माना जाता है भगवान विष्णु के नर नारायण नामक नामक दो अवतार हैं। वे भारत वर्ष के बद्रीकाश्रम तीर्थ में तपस्या करते हैं। उन दोनो ने पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसमे स्थित हो पूजा ग्रहण करने के लिये भगवान शम्भु से प्रार्थना की। शिवजी भक्तों के अधीन होने के कारण प्रतिदिन उनके बनाये हुए पार्थिव लिंग में पूजित होने के लिये आया करते थे। जब उन दोनो के पार्थिव पूजन करते बहुत दिन बीत गये, तब एक समय परमेश्वर शिव ने प्रसन्न होकर दोनों से वर मांगने को कहा। दोनो ने लोगो के हित की कामना से कहा- देवेश्वर ! यदि आप प्रसन्न है और यदि आप वर देना चाहते हैं तो अपने स्वरुप से पूजा ग्रहण करने के लिये यही स्थित हो जाइये तभी से भगवान शिव भक्तों को दर्शन देने के लिये स्वयं केदारेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो वहा रहते हैं। केदारेश्वर में पूजन तथा दर्शन करने वाले भक्तों को भगवान शिव अभिष्ट वस्तु प्रदान करते हैं तथा उनके लिये स्वप्न में भी दुःख दुर्लभ हो जाता है।
केदारनाथ मंदिर एक छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मंदिर के मुख्य भाग, मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मंदिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है. लेकिन कहा जाता है कि पत्थरों व कत्यूरी शैली से बने इस मंदिर का निर्माण पांडव वंशी जनमेजय ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। यह मंदिर वास्तुकला का अद्भुत व आकर्षक नमूना है। मंदिर के गर्भ गृह में नुकीली चट्टान भगवान शिव के सदाशिव रूप में पूजी जाती है। केदारनाथ मंदिर के कपाट मेष संक्रांति से पंद्रह दिन पूर्व खुलते हैं और अगहन संक्रांति के निकट बलराज की रात्रि चारों पहर की पूजा और भइया दूज के दिन, प्रातः चार बजे, श्री केदार को घृत कमल व वस्त्रादि की समाधि के साथ ही, कपाट बंद हो जाते हैं।
केदारनाथ के निकट ही गाँधी सरोवर व वासुकी ताल हैं। केदारनाथ पहुँचने के लिए, रुद्रप्रयाग से गुप्तकाशी होकर, 20 किमी. आगे गौरी कुंड तक, मोटर मार्ग से और 14 किमी. की यात्रा, मध्यम व तीव्र ढाल से होकर गुज़रने वाले, पैदल मार्ग द्वारा करनी पड़ती है।
मंदिर मंदाकिनी के घाट पर बना हुआ हैं भीतर घोर अन्धकार रहता है और दीपक के सहारे ही शंकर जी के दर्शन होते हैं। सम्मुख की ओर यात्री जल-पुष्पादि चढ़ाते हैं और दूसरी ओर भगवान को घृत अर्पित कर बाँह भरकर मिलते हैं, मूर्ति चार हाथ लम्बी और डेढ़ हाथ मोटी है। मंदिर के प्रांगण में द्रौपदी सहित पाँच पाण्डवों की विशाल मूर्तियाँ हैं। मंदिर के पीछे कई कुण्ड हैं, प्रात:काल में शिव-पिंड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है। इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाताहै। उन्हें विविध प्रकार से सजाया जाता है। भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं। माना जाता है केदारेश्वर में पूजन व दर्शन मात्र से मनुष्य जन्म मरण के बन्धनो से मुक्त हो जाता है.