SITANAVAMI
वैशाख शुक्ल नवमी
वन्दे विदेहतनयापदपुण्डरीकं कैशोरसौरभसमाहृतयोगिचित्तम् ।
हन्तुं त्रितापमनिशं मुनिहंससेव्यं सन्मानसालिपरिपीतपरागपुंजम् ।।
वैशाख शुक्ल नवमी, पुष्य नक्षत्र मंगलवार को मध्य काल की शुभ वेला में भगवती सीता का प्रादुर्भाव हुआ था। इसी कारण से इस योग में किया गया व्रत अत्यन्त पुण्य प्रदान करने वाला होता है। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार एक बार राजा जनक के राज्य में भयंकर सूखा पड़ा, चारों ओर त्राही-त्राही मच गई। सभी जीव जन्तु जल की एक-एक बूँद के लिए तरस गये थे, तभी आकाश में एक भविष्यवाणी हुई कि राजा जनक यदि स्वयं राज्य में हल चलायेंगें तभी यह सूखा समाप्त हो सकेगा। राजा जनक ने अपनी प्रजा को संकट से उबारने के लिए स्वंय हल से भूमि जोतने लगे, खेत जोतते समय अचानक राजा जनक का हल भूमि में दबे घड़े से टकरा गया और घड़ा फूट गया। घड़े से देवी सीता प्रकट हुई। देवी सीता के प्रकट होते ही आकाश से जल की धार बहने लगी। चारों ओर खुशी की लहर दौड़ गई। चूँकि हल की नोंक और भूमि को भी सीता कहा जाता है, इसी कारण उस छोटी बालिका का नाम भी सीता रखा गया। भूमि के गर्भ से उत्पन्न इस दिव्य बालिका का जन्म नवमी की पावन तिथि को हुआ था इसी कारण इस दिन को भगवती सीता के जन्मोत्सव के रुप में मनाया जाता है।
जिस प्रकार हिन्दु समाज में श्रीराम नवमी का बहुत महात्म्य माना जाता है, उसी प्रकार जानकी अर्थात सीता नवमी का भी महात्मय है। इस पावन दिन पर जो भक्त श्रद्धा भाव के साथ व्रत रखते हैं, उन्हें भगवान श्रीराम चन्द्र जी के साथ-साथ श्रीभगवती सीता जी की भी असीम कृपा और आशीर्वाद मिलता है।
पूजन विधि:- श्रीसीता नवमी व्रत एवं पूजन हेतु अष्टमी तिथि को ही स्वच्छ होकर शुद्ध भूमि पर सुन्दर मण्ड़प बनायें। यह मण्ड़प सौलह, आठ अथवा चार स्तम्भों का होना चाहिए। मण्ड़प के बीच में सुन्दर आसन रखकर भगवती सीता एवं भगवान श्रीराम जी की स्थापना करें। पूजन के लिए स्वर्ण, रजत, ताम्र, पीतल, काठ एवं मिट्टी इनमें से सामर्थ्य अनुसार किसी एक वस्तु से बनी हुई प्रतिमा की स्थापना की जा सकती है। मूर्ति के अभाव में चित्र द्वारा भी पूजन किया जा सकता है।
नवमी के दिन स्नानादि के पश्चात् श्रीजानकी-राम का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए। 'श्री रामाय नमः' तथा 'श्री सीतायै नमः' मूल मंत्र से प्राणायाम करें। 'श्री जानकी रामाभ्यां नमः' मंत्र द्वारा आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, पंचामृत स्नान, वस्त्र आभूषण, गन्ध, सिन्दूर तथा धूप-दीप एवं नैवेद्य आदि उपचारों द्वारा श्रीराम जानकी का पूजन व आरती करें।
दशमी के दिन फ़िर विधिपूर्वक भगवती सीता-राम की पूजा अर्चना के बाद मण्ड़प का विसर्जन करना चाहिए। इस प्रकार श्रद्धा व भक्ति से पूजन करने वाले भक्तों पर भगवती सीता व भगवान राम जी की कृपा सदैव बनी रहती है।