Notice: session_start(): A session had already been started - ignoring in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 2

Notice: Undefined index: user in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 13
Narasimha jayanti 2017 | Narasimha Jayanti Festival Story | totalbhakti
Notice: Undefined variable: currPage in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 170

Notice: Undefined variable: currPage in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 176

Notice: Undefined variable: currPage in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 182

Notice: Undefined variable: currPage in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 188

Notice: Undefined variable: currPage in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 197

Notice: Undefined variable: currPage in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 201

Notice: Undefined variable: currPage in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 206

Notice: Array to string conversion in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 207

Notice: Undefined variable: currPage in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 206

Notice: Array to string conversion in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 207

Notice: Undefined variable: currPage in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 206

Notice: Array to string conversion in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 207

Notice: Undefined variable: currPage in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 206

Notice: Array to string conversion in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 207

Notice: Undefined variable: currPage in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 206

Notice: Array to string conversion in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 207

Notice: Undefined variable: currPage in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 206

Notice: Array to string conversion in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 207

Notice: Undefined variable: currPage in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 206

Notice: Array to string conversion in /home/infototalbhakti/public_html/newHeader.php on line 207
totalbhakti logo
facebook icon
upload icon
twitter icon
home icon
home icon
style
Narsimha Jayanti
graypatti

NARSIMHA JAYANTI

narsimha jayanti
विक्रम सम्वत् 2074
वैशाख शुक्ल चतुर्दशी
भगवान नृसिंह जयंती
20 May 2017

नृसिंह देवदेवेश तव जन्मदिने शुभे ।
उपवासं करिष्यामि सर्वभोगविवर्जिताः ।।

वैशाख शुक्ल चतुर्थी को सम्पूर्ण विश्व की आत्मा अर्थात् भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए नृसिंह रुप में अवतार लिया था, तभी से यह शुभ दिन भगवान नृसिंह की प्राकट्य तिथि स्वरुप महोत्सव के रुप में मनाया जाता है। भगवान नृसिंह के पृथ्वी पर अवतरित होने के संबंध में एक प्राचीन कथा अत्यंत प्रचलित है। कथा के अनुसार राजा कश्यप के हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नामक दो पुत्र थे। हिरण्यातक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों ही दानव थे और अपने इसी दानवी स्वभाव के कारण हिरण्याक्ष ने एक बार पृथ्वी को पाताल लोक में पहुंचा दिया था, जिससे क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष को मार डाला। अपने भाई की मृत्यु से व्यथित होकर उसके भाई हिरण्याकशिपु ने संसार से ईश्वर का अस्तित्व ही मिटाने का प्रण लिया और भगवान शंकर की कठोर तपस्या करने लगा। हिरण्याकशिपु के कठिन तप से प्रसन्न होकर शिव जी ने उससे वर मांगने को कहा।

हिरण्याकशिपु ने बहुत ही सोच-विचार कर कहा – कि, प्रभु आप मुझे ऐसा वरदान दें कि-

"मैं ना अन्दर मरुँ, ना बाहर मरुँ ना दिन में मरुँ, ना रात में मरुँ ना भूमि पर मरुँ, ना ही आकाश में, ना जल में मरुँ, ना ही अस्त्र-शस्त्र से, ना मनुष्यों के हाथों मरुँ, ना किसी पशु द्वारा मरुँ"

भगवान शिव मुस्कुराकर बोले – "तथास्तु ! अर्थात् जैसा तुमने कहा है, वैसा ही होगा.......

इस वरदान को पाकर हिरण्यकशिपु को स्वंय पर बहुत ज्यादा अहंकार हो गया था। वरदान प्राप्त होने के बाद अब वह अपने आप को ही अजर-अमर समझने लगा था। इसी अहंकार के कारण उसने अपने राज्य में स्वंय को ही भगवान घोषित कर दिया था। उसका आदेश था कि राज्य के सभी लोग केवल उसे ही भगवान माने और उसकी ही पूजा करें। यदि कोई भी ऐसा करने से मना करता था तो हिरण्याकशिपु उसे बहुत ही कठोर दण्ड देता था। हिरण्याकशिपु के अत्याचारों के कारण चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई।

कुछ समय बाद हिरण्याकशिपु के यहाँ एक बालक का जन्म हुआ जिसका प्रह्लाद रखा गया। राक्षस कुल में जन्म लेने के उपरांत भी बालक प्रह्लाद की ईश्वर में असीम आस्था थी। हिरण्याकशिपु ने बालक प्रह्लाद के मन से भगवान हरि की भक्ति को मिटाने के लिये काफी प्रयास किये किन्तु ऐसा ना हो सका। हिरण्याकशिपु चाहता था कि बालक प्रह्लाद उन्हीं की भांति दुर्गणों का स्वामी बनें। हिरण्याशिपु के लाख चाहने पर भी जब भक्त प्रह्लाद नहीं मानें तो उसने उस नन्हें बालक को मरवाने के लिये षड्यंत्र रचा, परंतु वह सफल नहीं हो सका।

हिरण्याकशिपु ने नन्हें प्रह्लाद को अपनी बहन होलिका से जलवाने की कोशिश की। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में जल नही सकती, किन्तु यहाँ भी उसे असफ़लता ही मिली। ईश्वर के चमत्कार से प्रह्लाद तो बच गया किन्तु होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो गई। जब हिरण्याकशिपु के इतने सारे प्रयास विफ़ल हो गये तो एक दिन वह अत्यधिक क्रोध में आ गया और उसने तलवार निकाली और प्रह्लाद से पूछा – "अब बता, तेरा भगवान कहाँ है…?" प्रह्लाद बोला – "पिताजी, भगवान सभी जगह हैं" हिरण्याकशिपु बहुत ही क्रोध में बोला कि – "यदि तेरा भगवान सभी जगह हैं, तो इस खम्भे में भी अवश्य ही होगा?" प्रह्लाद बोला – "हाँ, पिताजी भगवान इस खम्भे में भी हैं" ऐसा सुनते ही हिरण्याकशिपु ने क्रोध से तमतमाते हुए, खम्भे पर तलवार से जोरदार प्रहार किया। तभी अपने नन्हें भक्त की रक्षा हेतु भगवान नरसिंह खम्भे को चीरते हुये हिरण्याकशिपु के समक्ष प्रकट हो गये। भगवान नृसिंह ने हिरण्याकशिपु को पकड़कर अपनी जांघों पर रखा और उसकी छाती को अपने नाखूनों से फाड़ डाला। बालक प्रह्लाद के कहने पर भगवान ने उसे मोक्ष प्रदान किया। नरसिंह भगवान ने नन्हें बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर ये वरदान दिया की आज के दिन जो भी मेरा यह व्रत करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा। इस घटना से भक्त प्रह्लाद के मन में ईश्वर के लिये श्रद्धा बहुत अधिक बढ़ गई।



पूजन विधि- प्रातः काल में भगवान नृसिंह के सामने उनकी पूजा का संकल्प लें। संकल्प इस प्रकार लें – "हे भगवन, आज मैं आपका व्रत करुंगा। इसे निर्विघ्नतापूर्वक पूर्ण कराईये। इसके बाद प्रातःकालीन सारे कार्य पूर्ण करके व स्नानादि के बाद पूजन-स्थल को लीपकर उसमें सुन्दर अष्टदल कमल बायीं ओर रखें इसके बाद कमल के ऊपर चावलों से भरा हुआ पात्र रखें और पात्र में अपनी शक्ति के अनुसार सोने की लक्ष्मी सहित भगवान नृसिंह की प्रतिमा बनवाकर स्थापित करें। तत्पश्चात्, इन प्रतिमाओं को पंचामृत से स्नान करायें। पूजा के स्थान पर एक मण्ड़प बनाकर उसे फ़ूलों के गुच्छों से सजा दें। इसके बाद उस ऋतु में सुलभ होने वाले फ़ूलों से षोड़्शोपचार की सामग्रियों से विधिपूर्वक भगवान श्री नृसिंह का पूजन करें। एक बड़ा दीपक पूजा की समाप्ति तक बुझने ना दें, इसे जलाये रखें क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ये जलता हुआ दिपक अज्ञानरुपी अन्धकार का नाश करने वाला होता है। जौ, चन्दन, कपूर, रोली, पुष्प तथा तुलसी दल आदि भगवान श्रीनृसिंह को अर्पण करने चाहिए। फिर घण्टी बजाते हुए श्रद्धा पूर्वक श्री नृसिंह भगवान की आरती उतारनी चाहिए।

इस मंत्र के द्वारा भगवान को नैवेद्य के लिए निवेदन करें -

नैवेद्यं शर्करां चापि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम् । ददामि ते रमाकान्त सर्वपापक्षयं कुरु ।।

दिन में पूजन के बाद रात्रि में भी नृसिंह भगवान का स्मरण करते हुए भजन कीर्तन करते रहना चाहिए। भगवान नृसिंह की कथा से सम्बंधित पौराणिक प्रसंग का भी पाठ करना चाहिए। प्रातःकाल श्रद्धा व भक्ति पूर्वक भगवान का पूजन करें। ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान देकर विदा करें। इस प्रकार जो भक्त श्रद्धा व नियम के साथ भगवान नृसिंह की पूजा करते हैं, वह मनोवांछित फ़लों की प्राप्ति करते हैं। इतना ही नही, भगवान नृसिंह का व्रत उन्हें सनातन मोक्ष की भी प्राप्ति की ओर भी ले जाता है।

Copyright © Totalbhakti.com, 2008. All Rights Reserved