GANESH CHATURTHI
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी
'' गणेश चतुर्थी '' इसी दिन विघ्नहर्ता मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेश अपने भक्तों को बुद्धि, सौभाग्य प्रदान करने के लिए पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। सुखकर्ता दुःखहर्ता गौरीकुमार भगवान श्रीगणेश सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता हैं। इस दिन गजमुख गणेश की पूजा की जाती है। यह वार्षिक उत्सव दस दिन तक मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश के मूर्ति की स्थापना की जाती है और दस दिन भावभक्ति के साथ पूजा अर्चना की जाती है। दस दिन बाद बड़ी ही धूमधाम से गणेश मूर्ति का विसर्जन जल में किया जाता है।
‘गणेश ' गज के सिर वाले शिव पार्वती के पुत्र, सुख, समृद्धि व मंगल के प्रतीक भगवान श्री गणेश जी की मूर्ति विशेष तौर से पंडालों में सजाई जाती है। कई लोग अपने घरों में भी गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते है। रोज सुबह शाम भगवान श्रीगणेशजी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। जिसके बाद अनंत चौदस वाले दिन प्रतिमा का जल में विसर्जन कर दिया जाता है। सामर्थ्य न होने पर मूर्ति को डेढ़ अथवा तीन दिन के बाद भी विसर्जित किया जा सकता है।
पूजन - विधि
रिद्धि और सिद्धि के स्वामी श्री गणेश की मूर्ति स्थापित करने के लिए सबसे पहले इन्हें स्नान करवाना चाहिए। महागणपति जी को पोंछ कर नये वस्त्र अर्पित कर पाटे पर स्थापित करें।
सिन्दूर, लाल चन्दन, पुष्प एवं पुष्प माला द्वारा गणपति जी का विधि - विधान से पूजा करें। पूजन में गणेश जी को लड्डुओं का भोग लगाएं। श्रीगणेश मूल मन्त्र ‘ॐ गं गणपतये नमः ’ द्वारा भगवान की स्तुति करें ।
इस प्रकार विधि-विधान से गणेश पूजन करने से संतान सुख, भौतिक सुख, लम्बी आयु, भाग्य वृद्धि तथा समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं ।