SHIVRATRI
श्रावण कृ. त्रयोदशी
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै 'न'काराय नमः शिवाय
श्रावण मास भगवान शिव आराधना का मास है। श्रावण मास में आदिदेव भगवान शंकर की आराधना से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है ।
इस दिन सुबह उठकर भगवान शिव का ध्यान करें। स्नानादि के बाद परम भक्ति भाव से विभिन्न फ़ूलों बिल्वपत्र, चन्दन , कुमकुम, धूप, दीप तथा विभिन्न मन्त्रों द्वारा भगवान शिव का पूजन करें। शिव शम्भू को पंचामृत सम्बन्धी द्रव्यों द्वारा शिव लिंग को स्नान कराएं। उनके श्रीअंगो में चन्दन का लेप करें। जल से उनके ऊपर जलधारा गिराकर अभिषेक करें। मन्त्रों या शिव के ग्यारह नामों द्वारा जल धारा चढ़ाकर, विभिन्न शिव मन्त्रों द्वारा इच्छाओं की कामना करते हुए भगवान शिव की आराधना करें। पाँच बत्तियों का दीप बनाकर उससे भगवान की आरती करें। पैरो में चार बार नाभि मंड़ल के सामने दो बार मुख के सामने एक बार तथा सम्पूर्ण अंगों में सात बार आरती दिखायें। अन्य वस्तुओं के अभाव होने पर बिल्वपत्र अर्पित करें। बिल्वपत्र समर्पित होने से ही शिव की पूजा सफ़ल होती है।
। अर्घ्यमंत्र ।
रुपं देहि यशो देहि भोगं देहि भोगं देहि च शंकर ।
भक्तिंमुक्तिफ़लं देहि गृहीत्वार्घ्यं नमोऽस्तु ते ।।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण मास में ही समुन्द्र मन्थन किया गया था। मंथन के दौरान समुद्र से विष निकला। भगवान शंकर ने इस विष को पीकर सम्पूर्ण सृष्टि की रक्षा की थी। अग्नि के समान विष पीने के बाद भगवान शिव का कंठ एकदम नीला पड़ गया था। विषाग्नि से भगवान भोले को शीतलता प्रदान करने के लिए सभी देवी देवताओं ने उन्हें जल अर्पण किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व माना जाता है।
उसी क्रम में आज भी लोग
श्रावण मास में श्रद्धालु गौमुख, ऋषिकेश, हरिद्वार से कावड़ में गंगा जल भर
कर लाते है, और श्रद्धा एवं उत्साह के साथ भगवान शंकर का जलाभिषेक करते
हैं। शिव का पूजन पुण्य एवं मोक्ष प्रदान करने वाला है।